चैराहे
पर चमकते हुए बैनर पर शहर के टाॅप क्लास डाक्टर का फ्री मेडिकल चेकअप का विज्ञापन
लिखा हुआ देखा तो ऐसा लगा कि कलयुग में भी सतयुग के कुछ विलुप्त प्राणियों के
अवशेष अभी भी बचे हुए हैं। एक आम इंडियन की तरह मैं भी उस फ्री के चार्म से अपने
आपको वार्न न कर सका और बिना पैसों के हार्म के चेकअप कराने चला गया। आधे घण्टे
लाइन में लगने के बाद जब मेरा नम्बर आया तो मुझे लगा कि मेरी यह फ्री का चेकअप
लेने की स्ट्रगल किसी फ्रीडम स्ट्रगल से कम न थी। इस फ्री चेकअप के चक्रब्यूह का
पहला दौर था सौ रूपये देकर रजिस्ट्रेशन कराना। खैर डाक्टर साहब की फीस वैसे तो तीन
सौ रूपये होती है लेकिन ऐसे दिखाने पर भी दो सौ रूपये की सेविंग हो रही थी सो
मैंने सौ रूपये देकर पहला स्टेप क्लियर कर लिया।
अगला पड़ाव था डाक्टर से भेंट। जब तक
उन्होंने मुझे बाकायदा आला-वाला लगाकर चेक किया तब तक डाक्टर साहब तो साक्षात ऊपर
वाले की प्रतिमूर्ति लग रहे थे। लेकिन जैसे ही उनका पेन चला तो महोदय ने पर्चे पर
दवाइयों और जांचों का पूरा का पूरा इन्साइक्लोपीडिया ही लिख दिया। पता चला बदन
दर्द के लिए डाक्टर साहब ने पाँच सौ रूपये की दवाइयां और पाँच हजार रूपये की
टेस्टिंग्स लिख दी थी। दवाइयां पार्टीकुलर मेडिकल स्टोर व जांचे निर्धारित
पैथालाॅजी से ही करानी थीं। यह फ्री का चक्रब्यूह मुझे ऐसे घेर लेगा इसका अन्दाजा
न था। खैर फ्री मेडिकल चेकअप की असलियत जानकर मैंने अभिमन्यु की तरह शहीद होने के
बजाय पतली गली से निकलना ही मुनासिब समझा।
आज तो जिधर देखो उधर सब कुछ फ्री में
हो गया है। ऐसा लगता है मानो रामराज्य फिर लौट आया हो। कहीं फ्री कम्प्यूटर कोर्स
चल रहे हैं ं,कहीं फ्री हाबी क्लासेज, तो कोई
इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट स्कूल फ्री लैपटाप ही बांटे डाल रहा है। बड़े-बड़े शापिंग
माॅल्स में तो फ्री का ऐसा हल्ला मचा रहता है मानो राजा हरिश्चन्द्र का दरबार लगा
हो जहाँ खैरात बंट रही हो। लेकिन जब आदमी इस फ्री के चक्कर में पड़ता है तो पता
चलता है कितनी कंडीशन्स अप्लाई होती है। कोई रजिस्ट्रेशन और कमीशन के नाम पर पैसे
वसूल रहा है तो कोई गिरती शाख को उठाने की कोशिश कर रहा है, तो कोई घटिया
माल ही ठिकाने लगाये दे रहा है।
इस फ्री के चक्कर में एक कहानी याद आती
है। एक बार एक राजा ने अपने मंत्री को संसार की जितनी भी बु़िद्धमानी की बातें हैं
उनका कलेक्शन करने को कहा। अब मंत्री जी ने संसार भर की अच्छी-अच्छी बातें एक मोटी
किताब के रूप में लिख दीं। राजा ने जब बुक का साइज देखा तो बोला, इतना
समय किसके पास है, इसको थोड़ा और संक्षिप्त करो। अब मंत्री जी ने कुछ बातें हटा दीं और बुक
का साइज कम हो गया। लेकिन राजा को अब भी बुक मोटी लग रही थी। सो राजा ने उसका साइज
जीरो करने को कहा। अब मंत्री ने बहुत पतली किताब में कुछ बातें लिख दीं और उन्हें
दिखाईं। राजा को अब भी उस साइज पर ऐतराज हुआ। मंत्री ने अब एक लाइन मंे लिखा और
कहा- महाराज संसार की सबसे बुद्धिमानी की बात इससे कम शब्दों में नही लिखी जा
सकती। जानते हैं मंत्री ने क्या लिखा-‘‘इस संसार में कुछ भी फ्री में नहीं मिलता
है।’’
-अलंकार रस्तोगी